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सन १९१० में जब शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं थी, तब दीवान बहादुर पंडित नंदलालजी कौल ने स्त्री शिक्षा के महत्व को समझा और एक कन्या शाला की स्थापना का सपना देखा |
व्यवस्थापक समिति में श्री माधवराव किबे, सेठ गंगासहयाजी, सेठ गोविन्द प्रसाद, सेठ सदासुख श्री दयाल जी रामनाथन जैसे महानुभाव सक्रिय सहयोगी बने | जनसहयोग तथा कुछ शासकीय सहयोग लेकर शीघ्र ही एक शाळा भवन का निर्माण करवाया गया |
स्वाधीनता आन्दोलन में भी संस्था की सक्रिय भूमिका रही| गांधी जी के आदर्शों का व्यापक असर रहा| तारतम्य में आज भी देशप्रेम और प्राचीन धरोहर के प्रति सजग पीढ़ी तेयार करने में विद्वान् शिक्षक जुटे हुए हैं |
सन १९४७ में संस्थापक स्व. दीवान बहादुर पंडित नन्दलाल जी कौल की सुपुत्री श्रीमती विमल जगदाले ने शाला के प्रथम प्राचार्य का पद ग्रहण किया |जिसे निरंतर बढ़ाते हुए, उन्होंने नारी शिक्षा को उच्च शिक्षा दिलाने हेतु १ अगस्त १९६५ में एक मात्र छात्राओं हेतु महाविद्यालय शहर में प्रारंभ किया | 

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